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रश्मिरथी षष्ठ सर्ग | Rashmirathi | भीष्म-कर्ण संवाद | Ramdhari Singh Dinkar | Basant Bhardwaj

بواسطة Basant Bhardwaj
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تم نشره في 2020/03/29

Hi I am Basant Bhardwaj. Welcome to our YouTube channel "BRAIN TECH". ----------------------- About this video:- षष्ठ सर्ग :- भीष्म और कर्ण को हम महाभारत के उन योद्धाओं में देखता हूं। जिन्होंने कर्तव्य और संकल्प के प्रति अद्वितीय निष्ठा दिखाई है। लेकिन मैं इन्हें ही उन योद्धाओं में भी देखता हूं जो एक समय में कर्तव्य के प्रति कमजोर होते हुए दिखे और अपने कर्तव्य से विमुख होते देखा गया। जब दुर्योधन को इनकी आवश्यकता थी तब क्या उन्हें इच्छा मृत्यु को स्वीकार करना चाहिए था और वह तो राष्ट्र के रक्षा के लिए संकल्पित थे । युद्ध तो हो ही रहे सभी योद्धा युद्ध कर ही रहे थे, लेकिन जय पराजय का निर्णय पूरे युद्ध काल में तो श्री कृष्ण ही करते रहे हैं। क्या भीष्म को इच्छामृत्यु स्वीकार करना था जबकि उन्हें दुर्योधन के तरफ से लड़ना था । क्या जो यह सब कुछ हुआ यह गलत था। इस पर मेरा अपना निजी विचार है कि एक सीमा के बाद स्वयं का प्रण या संकल्प अपने समाज पर अपने राष्ट्र पर भारी परने लगे तो संकल्प तोड़ देना चाहिए। शायद यही वजह रहा होगा भीष्म के इच्छा मृत्यु का, कर्ण के लचीले स्वभाव का और भगवान श्री कृष्ण का महाभारत युद्ध के दौरान सुदर्शन चक्र उठाने का खैर चलिए चलते हैं अपने विषय की ओर "रश्मिरथी" का यह छठा अध्याय बहुत प्रभावी, शिक्षाप्रद और वीरता पूर्ण सर्ग है यह अध्याय महाभारत के उस सर्ग पर है जब पितामह वाणशैय्या पर लेटे रहते हैं और युद्ध का नेतृत्व कर्ण को सौंप दिया जाता है। तब कर्ण पितामह से आशीर्वाद लेने जाता है। पितामह ने कर्ण को नरसंहार रोकने के लिए समझाते हैं परंतु कर्ण नहीं मानता और युद्ध आरंभ हो जाता है। कर्ण अर्जुन को ललकारता है लेकिन श्री कृष्ण अर्जुन के रथ को कर्ण के सामने जाने नहीं देते हैं। क्योंकि उन्हें भय था कि कर्ण एकघनी का प्रयोग करके अर्जुन को मार देगा अर्जुन को बचाने के लिए श्री कृष्णा भीम पुत्र घटोत्कच को युद्ध भूमि में उतार दिया । घटोत्कच ने घमासान युद्ध किया जिससे कौरव सेना त्राहि-त्राहि कर उठी । अंततः दुर्योधन ने कर्ण से कहा हे वीर! विलपते हुए सैन्य का अचिर किसी विधि प्राण करो, जब नही अन्य गति, आँख मूंद एकघनी का सनधान करो। अरि का मस्तक है दूर, अभी अपनो के सीस बचाओं तो, जो मरण-पाश है पड़ा, प्रथम उसमे से हमें छुड़ाओ तो।। कर्ण ने भारी नरसंहार करते हुए घ

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