मेरठ का ओडिएन सिनेमा गुज़रे ज़माने के सिनेमा घर और फ़िल्म वाले प्रोजेक्शन रूम का जीवंत नमूना माना जा सकता है. सिनेमाघर और फ़िल्मों के इतिहास की बची हुई निशानी की कहानी है यह. कभी खचाखच भरे रहने वाले सिनेमाघरों और पर्दे पर एक्शन की दाद देने वाली सीटियों और पहले शो में फ़िल्म देखने के रोमांच की कितनी ही यादें आपके पास होंगी. अब हाल यह है कि ओडिएन के शो में कई बार आठ-दस लोग ही होते हैं.
ओडिएन के प्रोजेक्शन रूम में पुराने दिनों का फ़िल्म प्रोजेक्टर न केवल सहेजा हुआ हैं, इसका इस्तेमाल भी करता है. नई फ़िल्में रील पर बनती नहीं, और पुरानी फ़िल्मों की रीलें घिस जाने के बाद धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही हैं.
तो यूं समझ लीजिए कि जब तक रीलें बची रहेंगी, ओडियन सिनेमा चलता रहेगा.
संशोधन | इस वीडियो के इंटरव्यू 07 अगस्त 2019 को रिकॉर्ड किए गए थे...भूलवश सन् 2020 की तारीख़ चली गई है.
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