साथियो, history explorers का गठन एक प्रयोगशाला के रूप में हुआ है। विद्यार्थी पढ़ाए जाते हैं और पढ़-लिखकर के वे समाज के महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्वों को संभालते हैं। history explorers का गठन एक व्यायामशाला के तरीके से किया गया है, जिसमें लोग व्यायाम करते हैं और पहलवान बनकर के दंगल में व्यक्तियों पछाड़ते हैं। युग निर्माण परिवार का गठन नर्सरी के तरीके से किया गया है, जिसमें छोटे छोटे फलदार पौधे तैयार किए जाते हैं और यहाँ पैदा होने के बाद दूसरे बगीचों में भेज दिए जाते हैं,
Today topic :संसाधनों की कमी और बढ़ती जनसंख्या से त्रस्त होकर आर्यो की एक शाखा पार्सिया ईरान के रास्ते भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में प्रवेश किया। वहा से उन्हें दिखाई देता हरा भरा सिन्धु का मैदान काफी आकर्षित किया। आर्य उस समय खानाबदोश चलवासी पशु चारक थे। उपमहाद्वीप का यह हरा भरा मैदान उनके लिए उपयुक्त था ।लेकिन इसके लिये उन्हें सामना करना पड़ा सिन्धु घाटी के लोगों से जो उस समय यहा निवास करते थे ।जो समकालीन विश्व के सभ्यताओ में सबसे विकसित और उन्नत लोग थे।लेकिन खानाबदोश और चरवाही पशुचारक होने के कारण आर्यो ने ऐसे बहुत सारे खतरो का सामना किया था। उनके पास था संघर्ष और युध्द का तजुरबा ।उनका सामना यहां के मूल निवासियों से हुआ ।भारत के इन मूल निवासियों को आर्यो ने दस्यु और राक्षस कहा। वैदिक कालीन आर्य कबीलों में विभक्त थे।इस युग के आर्यों के पांच प्रमुख जन अणु,यदु,तुवर्षु और द्रुहा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है ।आर्यो के ये कबीले अपने हितों के लिए कभी-कभी आपस में तथा, कभी-कभी भारत के मूल निवासियों के साथ निरंतर युद्ध करते थे। आर्यों के इन युद्धों का वर्णन वैदिक साहित्य में मिलता है। वैदिक साहित्य के अध्ययन से ज्ञात होता है, कि वैदिक कालीन आर्य बस्तियों के समीप अन्य बस्तियां भी थी। इन बस्तियों में आर्यों से भिन्न लोग रहते थे। इन बस्तियों के लोगों और आर्यों के रहन सहन में बड़ा अंतर था। इसलिए वैदिक आर्यों और इन पड़ोसी जातियों के मध्य निरंतर संघर्ष होते रहते थे। वेदों में ऐसे अनेक मंत्र है। जिनमें इन जातियों को दूर रखने और उनके नाश हेतु प्रार्थना की गई हैं। आर्यो और उनके पड़ोसी अनार्य जातियों के बीच लगातार संघर्ष होते रहते थे। विजेता पराजित जाति के लोगों को अपना दास बना लिया करते थे।इस प्रकार की दासता से मुक्त रहने के लिए वैदिक साहित्य में यत्र तत्र प्रार्थनाएं की गई हैं। अनार्य जातियों से निरंतर संघर्ष का परिणाम युद्ध होते थे ।युद्ध में विजई होने पर ही आर्यों की सभ्यता और संस्कृति का जीवित रह पाना संभव था ।ऋग्वेद में इंद्र को आर्यों का महान योद्धा कहा गया है ।इस काल में जो विद्वान पुरुष होते थे ऋषि कहलाते थे ।वे केवल धार्मिक कार्य ही नहीं करते वरन युद्ध में भाग भी लेते थे ।ऋग्वेद के अनुसार ऋषि धर्म शिक्षा और वीरता के प्रतीक थे ।पुरोहित सेना का भी नेतृत्व करते थे ,और इसके लिए उन्हें शस्त्र और वस्त्र और धन भी प्राप्त होते थे। ऋग्वेद में दिवोदास और शंभर नाम के अनार्य राक्षस के बीच युद्ध का वर्णन है। शंभर व्यास अथवा रावी नदी के बीच कांगड़ा घाटी का राजा था। उसके पास 100 किले थे। दिवोदास और शंभर का युद्ध लगभग 40 वर्षों तक चला ।आर्यो ने उसके 99 किलो को नष्ट कर दिया। वैदिक कालीन इतिहास की एक प्रमुख घटना दसराज युद्ध है।यह युध्द पुरूष्णी नदी के किनारे पर हुआ था ।जिसकी पहचान आज के रावी नदी से की जाती है। भरत वंश के नेता सुदास ने दस राजाओ के संघ को पराजित किया था। यह युध्द विश्वामित्र और वशिष्ठ नाम के दो पुरोहितो और शुदास के विरुद्ध गठित 10 राजाओ के संघ के मध्य हुआ था। नदी तट का युद्ध स्थल के रूप में चुनाव तथा शत्रु को नदी के पानी में ढकेल देना आर्यों की युद्ध कला की एक प्रचलित प्रणाली थी। 10 राज्य युद्ध में भरत वंश की सफलता ने आर्य कबीलों में उसकी प्रतिस्पर्धा और महत्व को बढ़ा दिया। अपने शत्रुओ से युद्ध करने और उन पर विजय प्राप्त करने के लिए आर्यो ने इंद्र को अपना राजा बनाया ऐसा ऋग्वेद में वर्णित है।वेद में इन्द्र को अनार्य जातियों का विजेता और शत्रु के नगरों को ध्वंस करने वाला पुरंदर कहा गया है। ऐसा वर्णन है कि इंद्र के पीछे पीछे देवसेनाए गमन करती थी। यजुर्वेद के नवे अध्याय के 1 मंत्र में बताया गया है, कि आर्यों ने अपने शत्रु अनार्य लोगों के दमन हेतु सर्वप्रथम राजा का निर्माण किया था।
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